कौन था जिसने पाकिस्तान में राधा कृष्ण के 12 मंदिर बनवा दिए ?
आज के इस लेख में हम एक ऐसे सख्स के बारे में बात करने जा रहे है जिसने पुरे विश्व में गीता के ज्ञान को बाँटा
उसने अमेरिका के जानवर जैसा व्यहवार करने वाले लोगो (Hippies) को इंसान बनाया / जिस सख्स के बारे में
हम बात करने जा रहे है उसने केवल अपने गुरु की आज्ञा से श्रीमद भागवत गीता को कई भाषायों म अनुवाद
किया और दुनिया के कौने कौने में पहुचाया ये भागवत गीता को कोइ धार्मिक किताब नहीं बल्कि एक ऐसी किताब
मानते थे जो की इंसान को जीना का सही तरीका सिखाती है तो आखिर कौन था वो सख्स आईये जानते है हमारी
आज की इस पोस्ट में इस पोस्ट को अंत तक जरूर पड़ना क्योकि इस पोस्ट के जरिये हमें बहुत सी चीजे सिखने
को मिलेगी जैस बिना पैसे के बहुत बड़ी पावर कैसे बने और गुरु की मानाने से मनुष्य कहा से कहा तक पहुँच
जाता है , अगर ऊपर तो दरिया भी रास्ता दे देता है ऐसे ही बहुत सी चीजे हम आज की इस पोस्ट में जानेनेगे /
दुनिया भर में राधा कृष्ण के मंदिर किसने बनवाए ?
आज हम जिनके विषय में बात करने जा रहे है उन महान सख्स का नाम श्रील प्रभुपाद शुरुआत से शुरू करते है
स्वामी प्रभुपाद का जन्म 1 सितम्बर 1896 में कोलकाता में हुआ था इनके पिता का नाम श्रीमान गौर मोहन और
माता श्रीमती रजनी देवी था जब ये 14 साल के थे तब इनकी माता का दिहंत हो गया ये पढने के लिए scottish
church colledge गए थे ये शुरू से ही तेज बुद्धी के थे अंग्रेजी में इन्होने अपनी पड़ी को पूरी किया ये शुरू आत में
कोई सन्यासी नहीं थे इनका अपना खुद का pharmecy का bussiness था पर जब 1922 में जब ये अपने गुरु से
मिले इनके गुरु इन्हें देख कर पहचान गए वो सोचते थे की श्रील पप्रभुपाद की अंग्रेजी इतनी अच्छी है की जब ये
अंग्रेजी में बोलेंगे तो अंगेज dictionary खोल कर देखेंगे की ये बोल क्या रहे है प्रभुपाद के गुरु ने उनसे कहा क्या
तुम मेरा एक काम करोगे देखो तुम्हारी अंगेजी भी बहुत अच्छी है और तुम्हारा शास्त्रों में भी मन लगता है क्यों न
तुम एक काम करो “श्रीमद भागवत गीता ” के ज्ञान को अंग्रेजी में translate करके दुनिया में पहुचादो विदेश से तो
बहुत साडी पुस्तके हमारे देश में आ रही है लेकिन हमारे देश के ज्ञान को कोई भी विदेश नहीं लेकर जा रहा अपने
गुरु कइ इस बात को प्रभुपद ने उनकी इस बात को दिल से लगा लिया भागवत गीता को अंग्रेजी में लिखना शुरू
कर दिया उस समय computer या typewriter नहीं हुआ करते थे ये अपनी कलम से लिखा करते थे एक साल के
अन्दर इन्होने बहुत सरे पेजों में भागवत गीता को लिख दिया/
श्रील प्रभुपाद सन्यासी कब बने ?
एक दिन की बात है जब श्रील प्रभुपद अपनी घर पर नहीं थे तब इनके घर पर एक कवाडे वाला आता है और
इनकी पत्नी उन गीत के पेजों को उस कवादी वाले को बेच देती है जब श्रील प्रभुपाद अपने घर वापस आकर
अपनी पत्नी से पूंछते है की जो मैं भागवत गीता के पेज लिखे थे वे कहा गए तब उनकी पत्नी ने कहा की वो तो मैं
कवादी वाले को बेच दिए यह सुनकर प्रभुपाद बहुत गुस्सा हुए और अपनी पत्नी से बोले की क्यों बेचे उनकी पत्नी ने
खा की चाय खरीदने के लिए अंग्रेजों ने कहा है चाय पिया करो चाय सेहत के लिय्हे बहुत अच्छी होती है फिर
पर्भुपाद जी बोले tea और me तब इनकी पत्नी ने बोल दिया tea तब से इन्होने अपना घर त्याग दिया /
वहां से जनके बाद इन्होने फिर से भागवत गीत लिखना सुरु किया और फिर वह वृन्दावन चले गए वहां पर इन्होने
फिर से तयारी की और वहां पर भी भागवत गीता को अंग्रेजी में लिखते रहे ये जानते थे की दुनिया का सबसे बड़ा
देश है अमेरिका और अमेरिका का सबसे बड़ा शहर है New york तो इन्हों सोचा की क्यों न New york से ही
शुरुआत की जाये फिर ये अपनी 70 साल की उम्र में अमेरिका के लिए निकल पड़े ३२ दिन का रास्ता था और उस
रस्ते के बीच में भी इन्हें 2 बार हार्ट अटैक आ गया लेकिन फिर भी ये रुके नहीं ये बड़ते रहे इनके पास में सिर्फ
कुच्छ किताबे थी और केवल 7 डोलर पास में थे और फिर ये पहुंचे New york ये जानते थे की यहाँ मेरी जान
पहचान का कोई नहीं है मैं अकेला हु और मई अकेला सबकुछ नहीं कर सकता लेकिन इसका मतलब ये नहीं है
मैं कुछ नहीं कर सकता मैं वो सबकुछ करूँगा जो मैं कर सकता हूँ और वो कुछ कुछ करके मई वो सबकुछ भी
कर दूंगा जो मुझे करना है उन दिनों New york में बहुत सरे हिप्पिएस आ गए थे ये हुप्पिएस वो लोग हुआ करते
थे जो खुले आम सड़को पर नंगे गूमा करते थे खुले आम योन गति विधिय किया करते थे, नशा करते थे और ये न तो
किसी भी धर्म को मन्नते थे अमरीकी सरकार इन हिप्पिएस से बहुत तंग आ चुकी थी वो क्युकी ये लोग अपना घर
छोड़ चुके थे और ये पूरी तरह से स्वतंत्र हो चुके है और खुले आम खुच भी कर रहे है / प्रभुपाद जी ने सोचा क्यों न
in हिप्पिएस के साथ ही इस सुभ काम की सुरुआत की जाये ये उन हिप्पिएस के लिए किरतन किया कारते थे
लेकिन वो जो हिप्पिएस थे वो इनकी सुनते नहीं थे वो इनका इनका अपमान किया करते थे इनके मुह मर सिग्रट
का नशा छोड़ देते थे इनका सामन चोरी कर लिते थे टॉयलेट की लाइन में इन्हें पीछे दक्का मार देते थे लेकिन फिर
भी प्रभुपाद ने हार नहीं मणि वो इनके लिए किरतान करते रहे इनके लिए खाना बनाते थे वो सुभाह शाम इन्हें
भागवत गीता पर कथाये सुनाया करते थे फिर धीरे धीरे हिप्पिएस को इन सभी चीजो में मजा आने लगा फिर एक
दिन प्रभुपाद ने इनसे पूंछा की तुम ये नशा क्यों करते हो तो एक हिप्पी ने उनसे कहा मुझे ये सब करने में मजा
आता है तो इस पर श्रील प्रभुपद बोले की मई तो एक इससे भी बढ़िया नशा बताऊंगा जिसकी अगर तुम्हे एक बार
लत लग गयी तो पूरी जिन्दगी नहीं छुड़ा पाओगे वो नशा तुम्हे इससे भी ज्यादा मजा देगा फिर हिप्पी वोला क्या ऐसा
भी कोई नशा है प्रभुपाद बोले हा हिना न हरी नाम का नशा मई तुम्हे हरी नाम लेना सिखाऊंगा और ये एक ऐसा
नशा है की अगर ये किसी को लग गया तो इसके आगे बाकि सभी नशे फीके पद जायेंगे फिर धीरे धीरे लोगो ने
इनकी बात सुनना सुरु किया ये अपना घर वर तो पहले ही छोड़ चुके थे इसलिए ये भागवत गीता सिखने में लग
गए पर्भुपाद ये बात जानते थे की अगर मैंने इन्हें भागवत गीता पढना सिखा दिया तो ये मेरे आन्दोलन को पूरी
दुनियामें फैला देंगे क्यूंकि ये अंग्रेज है और अंग्रेजों की बात पूरी दुनिया मानती है धीरे धीरे करके इनके लगभग
10000 शिष्य हो गए जो हिप्पिएस तो उन्हें इन्होने हैप्पी बना दिया अमरीकी सरकार भी इनका धन्यवाद करती थी
किक तुमने ऐसे लोगो का नशा छुडवा दिया लेकिन अभी इनका मक्सब पूरा नहीं हुआ था इनका मकसद तो पूरी
दुनिया में भागवत गीता के ज्ञान को फैलाना था फिर इन्होने अपने शिष्यों को बोला की मई तुम्हे बाकि देशों में भेज
रहा हु मैंने तुम्हे सिखाया तुम बाकियों को सिखाओ फिर धीरे धीरे करके इनके शिष्य पूरी दुनिया में फैलते चले गए
अब इनके पास प[ऐसों की कमी आ रही थी फिर इन्होने अपने शिष्यों को अगरबती का bussiness करना
सिखाया फिर उस bussiness से अमंदानी सुरु हुयी इस दौरान इन्होने पूरी दुनिया में लगभग 5.5 करोड़ किताबे
बाँट दी किताबे बेच कर इन्होने कुछ फण्ड जमा किय जिससे इन्होने मंदिर बनवाने शुरू कर दिए इन्होने अपने
शिष्यों को समझाया सिखाया फिर इनके शिष्यों ने भागवत गीता को 25 भासायों में translate किया और दुनिया
भर में पहुचना शुरू कर दिया अब इनकी इनकी चर्चा पूरे देश में होने लगी की ये कोन सन्यासी आया है कृष्ण
अन्जुन जिसकी किसी को कोई भी जानकारी नहीं थी सब उससे सिखने में लगे है चाहे किसी भी धर्मं का को कला
हो गोरो कैसा भी हो सभी इसे सिखने में लगे है तभी एक रिपोर्टर इनके पास आता है और इनसे कहता है भारत में
बहुत से भगवन है क्या तुम भी कोई भगवन को प्रभुपाद बोले नहीं मैं कोई भगवन नहीं हु मैं तो भगवन का नौकर
ही फिर कहा नहीं मुझसे गलती गो गयो मैं कोई भगवन का नौकर नहीं मैं तो भगवन का नौकर बन्ने की कोसिस
कर रहा हूँ इस बात पर रिपोर्टर हैरान हो गया बोला की पहली बार इंडिया से कोई आदमी आया है और बोल रहा
है की मैं भगवन नहीं भगवन का नौकर हूँ ये बात आग की तरह पूरे अमेरिका में फ़ैल गयी इसके बाद प्रभुपद जी
की प्रसिद्दी और भी ज्यादा बढ़ गयी एक दिन उनके पास हेन्र्री फोर्ड के बेटे edsel ford प्रभुपाद जी के पास आये
जैसे ही वो प्रभुपाद जी के पास पहुंचे प्रभुपाद जी बोले की हेन्र्री कहा है फिर एड्सेल फोर्ड की आँखों में आंसू आ गए
उनके मन में बिचार आया की इस संसार में कोई भी नहीं बचने वाला उन्होंने प्रभुपाद जी से कहा आप मुझे भी
अपना शिष्य बना लीजिये मुझे भगवत गीत सिखाइए फिर वो भी प्रभुपाद जी के शिष्य बन गए /
पकिस्तान में राधा कृष्ण के मंदिर किसने बनवाए ?
प्रभुपद एक ऐसे संत थे जिनके कारण दुनिया भर के हजारों मंदिरों भगवत गीता को पढाया जाता है / पकिस्तान
में रोज भले ही कुछ भी हो लेकिन श्री कृष्ण के 12 मंदिर आज भी पकिस्तान में मौजूद है जिनमे रोज सुबह शाम
भगवत गीता है पाठ कराया जाता है / ये ही वो सख्स से जिन्होंने ISCON ( International Society for Krishna
Consciousness) की स्र्थापना की / इन्हें पता था की अब इनके पास ज्यादा समय नहीं बचा है इसलिए अब
इन्होने एक dicta phone ले लिया और उससे translate करने लग गए ये दिन में सिर्फ 2 घंटे सोते थे और सुभाह
अपन एभाक्तो के साथ भागवत गीता का पाठ किया करते थे और फिर अपने शिष्यों को dicta फ़ोन पकड़ा देते
और उसपर translate किया करते थे और अपने शिष्यों को उसे किताबो में लिखने के लिए कहते इन्होने भागवत
गीता को translate करने के इलावा और भी बहुत से सामाजिक कार्य भी किये इन्होने एक प्रोग्राम चालू किया
जिसका नाम था “Food For Life ” जिसके कारण आज भी दुनिया के हजारों मंदिरों में मुफ़त में खाना खिलाया
जाता है /
श्रील प्रभुपाद की म्रत्यु कब हुयी थी ?
जब इनका अंतिम समय था जब ये दुनिया से विदाई लेने वाले थे और हॉस्पिटल में थे तब इनका शरीर बहुत ही ज्यादा दुबला पतला हो चूका था लेकिन फिर भी ये translate करने में लगे है डॉक्टर इनके पास आता था वो इन्हें जब देखता था तब उसका मुह खुला का खुला रह जाया करता था वो उनके हाथ को भी पकड़ने से भी डरा करता था क्योंकि इनके हत्ढ़ इतने पतले हो चुके थे की हड्डिय साफ़ नजर आती थी डॉक्टर को ये लगता था मई इन्हें पकडू तो कही इनकी हड्डी में दर्द न होने लग जाये डॉक्टर का मुह खुला रह जाता था इनके शिष्य डॉक्टर को देखा करते थे की डॉक्टर का मुह कितने इंच खुला है फिर एक दिन 14 नवम्बर 1977 को ये परलोक सिधार गए /